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Happiness Curriculum: बच्चों के मन को शांत, दिल को मजबूत और सोच को खुला बनाने की पहल

  Happiness Curriculum — जब पढ़ाई सिर्फ नंबरों की नहीं, ज़िंदगी को समझने की भी हो

“बच्चा कितना पढ़ा है, ये ज़रूरी है — लेकिन वो खुश है या नहीं, ये उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है।”


दिल्ली के स्कूलों में एक नया सबक पढ़ाया जा रहा है —
लेकिन इसमें न फॉर्मूले हैं, न रटे हुए चैप्टर…
यहाँ बच्चे सीखते हैं कि खुश कैसे रहा जाए,
अपने मन को कैसे समझा जाए, और दूसरों की भावनाओं का सम्मान कैसे किया जाए।

इसे कहते हैं 👉 Happiness Curriculum (हैप्पीनेस पाठ्यक्रम)
एक ऐसी पढ़ाई, जो बच्चों को किताबों के बाहर की जिंदगी से जोड़ती है।


 यह क्या है?

हैप्पीनेस करिकुलम दिल्ली सरकार द्वारा 2018 में शुरू की गई एक अभिनव पहल है,
जो कक्षा नर्सरी से लेकर आठवीं तक के बच्चों को
भावनात्मक समझ, आत्मविश्वास, ध्यान (meditation), और सकारात्मक सोच सिखाती है।


 इस करिकुलम की खास बातें:

हर दिन की शुरुआत 'माइंडफुलनेस' से

  • स्कूल की पहली घंटी ध्यान (meditation) से होती है

  • बच्चे शांत होकर अपने मन को सुनना और सोचों को सहेजना सीखते हैं

खुले मन से बातचीत

  • क्लास में बच्चे अपनी भावनाएं, डर, गुस्सा, खुशी और उलझन को शब्दों में कहना सीखते हैं

  • एक-दूसरे को जज किए बिना सुनने की कला सिखाई जाती है

कहानियाँ और गतिविधियाँ

  • किताबों से नहीं, ज़िंदगी की कहानियों से सीख

  • कहानियों के ज़रिए बच्चे आत्म-निरीक्षण, सहानुभूति और रिश्तों को समझना सीखते हैं


 बच्चों की जुबानी:

“अब जब मैं नाराज़ होता हूँ, तो गिनती गिन लेता हूँ — फिर मन शांत हो जाता है।”
आरव, कक्षा 4, दिल्ली

“मुझे अब लगता है कि मैं अपनी भावनाएं समझ सकती हूँ, और डरने की ज़रूरत नहीं।”
सान्या, कक्षा 6


 शिक्षकों का अनुभव:

“पहले बच्चे क्लास में ध्यान नहीं देते थे, अब वो खुद कहते हैं — ‘मैम, आज माइंडफुलनेस कराएं।’”
रेखा मैम, सरकारी स्कूल शिक्षिका


 इस पाठ्यक्रम की ताकत

  • बच्चे बेहतर सुनने वाले, समझने वाले और संवेदनशील बनते हैं

  • स्कूल का माहौल तनावमुक्त और सहयोगपूर्ण होता है

  • बच्चे न सिर्फ अच्छे छात्र, बल्कि अच्छे इंसान बनते हैं


क्यों ज़रूरी है Happiness Curriculum?

क्योंकि आज का बच्चा सिर्फ परीक्षा नहीं दे रहा —
वो दबाव, तुलना, अकेलेपन, गुस्से और डर से भी जूझ रहा है।
इसलिए हमें उसे सिर्फ पढ़ाना नहीं, जीना सिखाना है।


“खुशी कोई विषय नहीं —
वो एक आदत है,
जो अगर बचपन में सिखाई जाए,
तो पूरी उम्र साथ चलती है।”


अगर आप जानना चाहते हैं 
तो बताइए, मैं आपके साथ हूं। 

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