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Sabla / Kishori Balika Yojana – किशोरियों के स्वास्थ्य, पोषण और आत्मनिर्भरता की ओर मजबूत कदम

"आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से टिफिन प्राप्त करती हुई किशोरी, सबल योजना के लाभ लेते हुए, दीवार पर योजना का बोर्ड दिखाई देता है।"

सबल योजना / किशोरी बालिका योजना: बेटियों के स्वावलंबन की राह 

भारत जैसे देश में जहां बेटियाँ एक तरफ देवी का रूप मानी जाती हैं, वहीं दूसरी ओर कई बार उन्हें शिक्षा, पोषण और सम्मान से वंचित भी रहना पड़ता है। एक किशोरी के जीवन में जब उसका शरीर और मन कई बदलावों से गुजरता है, तब उसे सबसे ज़्यादा मार्गदर्शन, पोषण, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास की जरूरत होती है। इसी संवेदना और ज़रूरत को समझते हुए भारत सरकार ने सबल योजना (जिसे किशोरी बालिका योजना भी कहा जाता है) की शुरुआत की — ताकि देश की बेटियाँ न सिर्फ स्वस्थ रहें, बल्कि आत्मनिर्भर भी बनें।


किशोरी – एक संवेदनशील मोड़

जब कोई बच्ची 11-18 साल की उम्र में प्रवेश करती है, तो यह उसका शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से सबसे संवेदनशील और निर्णायक समय होता है। इस उम्र में वह न तो पूरी तरह से बच्ची रहती है, न पूरी तरह से वयस्क। वह अपनी पहचान, आत्म-विश्वास और समाज में अपने स्थान को लेकर संघर्ष कर रही होती है।

ग्रामीण भारत में स्थिति और भी कठिन है — यहाँ अधिकांश किशोरियाँ या तो स्कूल छोड़ चुकी होती हैं, या घरेलू जिम्मेदारियों में डूब चुकी होती हैं। उन्हें पोषण संबंधी जानकारी नहीं होती, मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के बारे में पता नहीं होता, और आत्म-रक्षा या करियर के बारे में तो कल्पना भी नहीं कर पातीं। यह स्थिति न केवल उनके भविष्य को प्रभावित करती है, बल्कि पूरे समाज की सेहत पर असर डालती है।


सबल / किशोरी बालिका योजना क्या है?

सबल योजना की शुरुआत केंद्र सरकार ने 2011 में की थी, जिसे बाद में Beti Bachao, Beti Padhao, POSHAN Abhiyaan, और RKSK (Rashtriya Kishor Swasthya Karyakram) जैसे अभियानों के साथ जोड़ा गया।

इस योजना का उद्देश्य है:

  • किशोरियों को सही पोषण देना

  • स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक करना

  • शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण देना

  • उन्हें आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाना


योजना के मुख्य घटक (Components)

  1. पोषण

    • 11 से 14 वर्ष की स्कूल न जाने वाली किशोरियों को गर्म पकाया भोजन और पोषण पूरक (Supplementary Nutrition) दिया जाता है।

    • आयरन-फोलिक एसिड की गोलियाँ, कैल्शियम सप्लिमेंट और हेल्थ चेकअप भी शामिल होते हैं।

  2. स्वास्थ्य और स्वच्छता जागरूकता

    • मासिक धर्म स्वच्छता, निजी स्वच्छता, साफ-सफाई और बीमारी से बचाव पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

  3. शिक्षा और जीवन कौशल (Life Skills)

    • किशोरियों को आत्म-रक्षा, आत्म-विश्वास, संवाद क्षमता, निर्णय क्षमता, और यौन शिक्षा जैसे विषयों पर प्रशिक्षित किया जाता है।

  4. स्वावलंबन प्रशिक्षण

    • 16 से 18 वर्ष की किशोरियों को सिलाई, कढ़ाई, ब्यूटीशियन, कंप्यूटर, मोबाइल रिपेयरिंग जैसे व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए जाते हैं ताकि वे खुद की कमाई कर सकें।

  5. काउंसलिंग और मार्गदर्शन

    • मानसिक स्वास्थ्य, तनाव, बाल विवाह, लैंगिक भेदभाव आदि विषयों पर विशेषज्ञों के साथ संवाद कराया जाता है।


कौन ले सकता है लाभ?

सबल योजना का लाभ लेने के लिए:

  • लड़की की उम्र 11 से 18 वर्ष के बीच होनी चाहिए।

  • वह स्कूल छोड़ चुकी हो या स्कूल न जाती हो (11–14 वर्ष)।

  • 14–18 वर्ष की किशोरियों को पोषण और प्रशिक्षण दोनों मिल सकते हैं।

  • उसे आंगनवाड़ी केंद्र से जुड़ना होगा।


लाभ लेने की प्रक्रिया (Step-by-Step Guide)

  1. निकटतम आंगनवाड़ी केंद्र जाएँ
    गाँव या वार्ड स्तर पर जो भी आंगनवाड़ी केंद्र है, वहाँ किशोरी या उसके अभिभावक जा सकते हैं।

  2. नामांकन (Registration)

    • आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल छोड़ने का प्रमाण (यदि हो) लेकर जाएँ।

    • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नाम दर्ज करेगी और पहचान पत्र देगी।

  3. पोषण और स्वास्थ्य सेवा शुरू

    • नियमित तौर पर पोषण आहार लेना शुरू करें।

    • मासिक चेकअप और सप्लिमेंट का लाभ लें।

  4. प्रशिक्षण और कार्यक्रम में भाग लें

    • केंद्र में चल रहे सभी प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लें।

    • जीवन कौशल विकास की कक्षाओं में शामिल हों।

  5. काउंसलिंग और सलाह

    • मानसिक, सामाजिक या स्वास्थ्य से जुड़ी कोई भी समस्या हो तो काउंसलर से बात करें।


किशोरी के जीवन में बदलाव: एक सच्ची कहानी

मिलिए ममता से — एक 15 वर्षीय किशोरी जो झारखंड के एक छोटे से गाँव में रहती है। उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं। ममता छठी के बाद पढ़ाई छोड़ चुकी थी। उसे मासिक धर्म के दौरान तकलीफ़ होती थी, लेकिन वह किसी से कह नहीं पाती थी। एक दिन गाँव की आंगनवाड़ी दीदी ने उससे बात की और उसे सबला योजना से जोड़ा।

अब ममता हर दिन पोषण आहार लेती है, उसे आयरन और कैल्शियम की गोलियाँ मिलती हैं। उसने ब्यूटीशियन कोर्स किया है और अब गाँव में लड़कियों के छोटे-मोटे मेकअप का काम करने लगी है। सबसे बड़ी बात – वह अब खुल कर बात करती है, सवाल पूछती है और आत्मविश्वास से भरी हुई है।


क्यों ज़रूरी है यह योजना?

  • कुपोषण से लड़ाई: किशोरियों में एनीमिया और कुपोषण भारत में बहुत आम है। यह योजना उन्हें सही पोषण देकर उनकी सेहत सुधारती है।

  • शादी की उम्र बढ़ाने में मदद: जब लड़कियाँ आत्मनिर्भर बनती हैं तो वे बाल विवाह से बच पाती हैं।

  • जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग: शिक्षित और जागरूक किशोरियाँ परिवार नियोजन को समझती हैं और जिम्मेदार माँ बनती हैं।

  • राष्ट्र की प्रगति: जब बेटियाँ स्वस्थ, शिक्षित और आत्मनिर्भर होती हैं, तो समाज और देश दोनों का भविष्य उज्जवल होता है।


चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता

हालाँकि योजना की भावना बेहद सकारात्मक है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई बाधाएँ भी आती हैं:

  • कई जगह आंगनवाड़ी केंद्रों की स्थिति खराब है।

  • पोषण आहार की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं।

  • प्रशिक्षण सामग्री और शिक्षक पर्याप्त नहीं हैं।

  • सामाजिक रूढ़ियाँ लड़कियों को खुल कर सामने नहीं आने देतीं।

इन सभी समस्याओं का समाधान तब संभव है जब सरकार के साथ समाज भी बेटियों के पक्ष में खड़ा हो। माता-पिता, स्कूल, पंचायत और स्वयंसेवी संस्थाएँ यदि साथ मिलकर काम करें, तो यह योजना केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन सकती है।


निष्कर्ष: सबल बनेगी बेटी, तभी सशक्त बनेगा भारत

किशोरी बालिका योजना केवल लड़कियों को कुछ लाभ देने की पहल नहीं है, यह उनकी पहचान, आत्म-सम्मान और आत्मनिर्भरता का आंदोलन है। यह योजना उन्हें न केवल स्वास्थ्य देती है, बल्कि सपनों को साकार करने की शक्ति भी देती है।

जब एक किशोरी आत्मनिर्भर होती है, तो वह सिर्फ अपना जीवन नहीं बदलती, बल्कि अगली पीढ़ी का भविष्य भी गढ़ती है। इसलिए आइए, सबला योजना के जरिए हम बेटियों को वह संबल दें, जिसकी वे हकदार हैं — सम्मान, स्वाभिमान और स्वावलंबन।


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सबल योजना / किशोरी बालिका योजना - FAQ

सबल योजना / किशोरी बालिका योजना - सामान्य प्रश्न (FAQ)

सबल योजना एक सरकारी योजना है जिसका उद्देश्य 11 से 18 वर्ष की किशोरी बालिकाओं को पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा और जीवन कौशल का प्रशिक्षण देना है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।

  • 11 से 18 वर्ष की किशोरी बालिकाएँ
  • जो स्कूल नहीं जाती हों (11–14 वर्ष)
  • जो आंगनवाड़ी केंद्र से जुड़ी हों
  • गरीब एवं जरूरतमंद परिवार की बेटियाँ
  • निकटतम आंगनवाड़ी केंद्र पर जाएँ
  • नामांकन फॉर्म भरें व दस्तावेज़ दें
  • पोषण आहार व प्रशिक्षण में भाग लें
  • हर कार्यक्रम और स्वास्थ्य जांच में शामिल रहें
  • गर्म पकाया भोजन व पोषण सप्लिमेंट
  • आयरन-फोलिक एसिड गोलियाँ, स्वास्थ्य जांच
  • स्वच्छता व मासिक धर्म के बारे में जागरूकता
  • कौशल विकास प्रशिक्षण जैसे सिलाई, ब्यूटीशियन आदि
  • मानसिक व यौन स्वास्थ्य पर काउंसलिंग
  • आधार कार्ड / राशन कार्ड / जन्म प्रमाण पत्र
  • फोटो व स्कूल छोड़ने का प्रमाण (यदि हो)
  • अभिभावक का नाम व मोबाइल नंबर

यह योजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित की जाती है और ज़मीनी स्तर पर आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से लागू होती है। ASHA, ANM और NGO का भी सहयोग होता है।

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